जल-संरक्षण हर नागरिक को जिम्मेदारी का अहसास कराया जाए


पानी को लेकर पूरी दुनिया में बढ़ने वाली मुश्किलों के चलते बेहतर है कि बारिश की एक-एक बूँद को बचाया जाए और हर नागरिक को अपनी इस जिम्मेदारी का अहसास कराया जाए। सदियों से हमारे पूर्वज इस दिशा में काम करते रहे हैं। हाल-फिलहाल में भी इस दिशा में तेजी से काम हुआ है। मात्र पिछले दो महीनों में जलशक्ति अभियान के तहत जल-संरक्षण हेतु 5 लाख से अधिक बुनियादी ढाँचे बनाए गए हैं। केरल में कुट्टुमपेरूर नदी को मनरेगा के तहत मात्र 70 दिनों में पुनर्जीवित किया गया।


2018 की नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में करीब 60 करोड़ लोगों को पानी की परेशानी का सामना करना पड़ता है। देश के करीब 75 फीसदी घरों में आजादी के सात दशक बाद भी पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। जबकि ग्रामीण इलाकों के हालात तो और बदतर हैं, जहाँ 84 फीसदी घरों में अभी भी जलापूर्ति की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं, देश में 70 फीसदी पानी दूषित है। तभी तो जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत दुनिया की 122 देशों की सूची में 120वें स्थान पर है। जल सूचकांक रैकिंग के मामले में देश में गुजरात पहले पायदान पर है तो मध्यप्रदेश दूसरे जबकि आन्ध्रप्रदेश तीसरे नम्बर पर है। बिहार, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और झारखण्ड सबसे पिछड़े राज्यों में शामिल हैं।  


“मेरा पहला अनुरोध है, जैसे देशवासियों ने स्वच्छता को एक जन-आन्दोलन का रूप दे दिया। आइए, वैसे ही जल-संरक्षण के लिए एक जन-आन्दोलन की शुरुआत करें।” ये शब्द भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हैं। प्रधानमंत्री ने 30 जून, 2019 को अपने दूसरे कार्यकाल में पहली बार 'मन की बात' कार्यक्रम में ये उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने लोगों से जल-संरक्षण के मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि जल-संरक्षण के लिए इस्तेमाल होने वाले पारम्परिक तौर-तरीकों को साझा करने की जरूरत है। 2014 से 2018 के बीच मनरेगा बजट से इतर केवल जल-प्रबन्धन पर ही सालाना 32 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। 2017-18 में 64 हजार करोड़ रुपए के कुल खर्चे की 55 प्रतिशत राशि यानी करीब 35 हजार करोड़ रुपए जल-संरक्षण जैसे कामों पर ही खर्च की गई। सरकार के इन प्रयासों के चलते ही तब तीन सालों में करीब 150 लाख हेक्टेयर जमीन को इससे फायदी मिला था। प्रधानमंत्री ने पानी की एक-एक बूँद को बचाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि आने वाले वक्त में पानी को लेकर पूरी दुनिया में बढ़ने वाली मुश्किलों के चलते बेहतर है कि बारिश की एक-एक बूँद को बचाना हर किसी की जिम्मेदारी हो। सदियों से हमारे पूर्वज इस दिशा में काम करते रहे हैं। मनारकोविल, चिरान महादेवी, कोविलपट्टी या पुदुकोट्टई के साथ-साथ तमिलनाडु के मन्दिरों में जल-प्रबन्धन के बारे में शिलालेख मौजूद हैं। गुजरात में अडालज और पाटन की रानी की बावड़ी के साथ ही राजस्थान में जोधपुर में चाँद बावड़ी जल संरक्षण के प्राचीन प्रमाण हैं। पिछले 3-4 वर्षों में इस दिशा में काम भी हो रहा है। केरल में कुट्टुमपेरूर नदी को मनरेगा के तहत काम करके 70 दिनों में पुनर्जीवित किया गया। साथ ही, फतेहपुर जिले में ससुर और खदेरी नामक दो छोटी नदियों को भी पुनर्जीवित किया गया।


केन्द्र सरकार ने जल-संसाधन और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालयों को मिलाकर एक एकीकृत मंत्रालय का गठन किया है, जिसे 'जलशक्ति मंत्रालय' नाम दिया गया है। इस महत्त्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी गजेन्द्र सिंह शेखावत को दी गई है। रतनलाल कटारिया राज्यमंत्री है। प्रधानमंत्री की जल-संरक्षण की अपील के अगले ही दिन केन्द्र सरकार ने जल-संरक्षण अभियान शुरू कर दिया। केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री ने 1 जुलाई, 2019 को जल-संरक्षण अभियान की शुरुआत की। इसके तहत देश के 256 जिलों के ज्यादा प्रभावित 1592 ब्लॉकों को प्राथमिकता के आधार पर चुना गया। इस अभियान को दो चरणों में चलाना तय किया गया है। पहला चरण 1 जुलाई, 2019 से शुरू होकर 15 सितम्बर, 2019 तक, तो दूसरा चरण एक अक्टूबर, 2019 से शुरू होकर 30 नवम्बर, 2019 तक। इस अभियान का फोकस पानी के कम दबाव वाले जिलों और ब्लॉकों पर होगा। दरअसल इस अभियान का मकसद जल-संरक्षण के फायदों को लेकर लोगों के बीच जागरुकता पैदा करना है ताकि देश के हर घर में नल का पानी उपलब्ध कराने में सहभागिता और जागरुकता का लाभ मिल सके। जलशक्ति अभियान पेयजल और स्वच्छता विभाग की पहल पर कई मंत्रालयों के साथ-साथ राज्य सरकारों का एक मिला-जुला प्रयास है। केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि जिला प्रशासन के साथ मिलकर जल संरक्षण को लेकर मंत्रालय द्वारा तय किए गए पाँच बिन्दुओं पर काम करेंगे ताकि मंत्रालय तय समय में अपना लक्ष्य हासिल कर सके। जलशक्ति मंत्रालय का लक्ष्य साल 2024 तक देश के हर घर में पीने का साफ पानी मुहैया कराना है। इसी को ध्यान में रखते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी अपना पहला बजट पेश करते वक्त ही साफ कर दिया था कि अगले 5 साल में देश के हर नागरिक को पीने का साफ पानी मुहैया कराना सरकार की प्राथमिकता है। इसीलिए जल-संरक्षण को मिशन के तौर पर लागू किया गया है, ताकि वर्षाजल संरक्षण, जल-संरक्षण और जल प्रबंधन को बढ़ावा मिल सके। जलशक्ति मंत्रालय ने अपनी प्राथमिकताएँ तय की हैं। इनमें प्रमुख हैं-गंगा संरक्षण, नदियों को आपस में जोड़ना, बाढ़ प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन, बाँध पुनर्वास, क्षमता निर्माण, राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना, नमामि गंगे, राष्ट्रीय जल मिशन कार्यान्वयन, नदी बेसिन प्रबन्धन, भूजल प्रबंधन और बुनियादी ढाँचे का विकास। 


पानी के मोर्चे पर देश की मौजूदा स्थिति को भी समझना जरूरी है। साल 2018 की नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में करीब 60 करोड़ लोगों को पानी की परेशानी का सामना करना पड़ता है। देश के करीब 75 फीसदी घरों में आजादी के सात दशक बाद भी पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। जबकि ग्रामीण इलाकों के हालात तो और बदतर हैं, जहाँ 84 फीसदी घरों में अभी भी जलापूर्ति की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं, देश में 70 फीसदी पानी दूषित है। तभी तो जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत दुनिया की 122 देशों की सूची में 120वें स्थान पर है। जल सूचकांक रैकिंग के मामले में देश में गुजरात पहले पायदान पर है तो मध्यप्रदेश दूसरे जबकि आन्ध्रप्रदेश तीसरे नम्बर पर है। बिहार, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और झारखण्ड सबसे पिछड़े राज्यों में शामिल हैं। यकीनन ये स्थिति बेहद गम्भीर है क्योंकि पिछड़े राज्यों में देश की आबादी का बड़ा हिस्सा रहता है। 


भूजल इस्तेमाल करने के मामले में भारत पूरी दुनिया में पहले नम्बर पर है। रिपोर्ट बताती है कि भारत अकेले इतना भूजल इस्तेमाल करता है जितना कि अमरीका और हमसे ज्यादा आबादी वाला मुल्क चीन मिलकर करते हैं। वैसे समझना ये भी जरूरी है कि हम कितने भूजल का इस्तेमाल कहाँ करते हैं। दरअसल देश के 89 प्रतिशत भूजल का इस्तेमाल कृषि में होता है। जबकि पीने के पानी के तौर पर 9 प्रतिशत भूजल का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं उद्योग-धन्धों में केवल 2 प्रतिशत भूजल का इस्तेमाल होता है। हालांकि गाँव और शहर का तुलनात्मक अध्ययन करें तो शहरों में पीने के पानी की 50 प्रतिशत जरूरत भूजल से ही पूरी होती है जबकि ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी की 85 प्रतिशत जरूरत के लिए अकेले भूजल पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जाहिर है देश की आबादी का बड़ा हिस्सा पानी की अपनी जरूरत के लिए भूजल पर ही आश्रित है। इसी का असर है कि केन्द्रीय भूजल बोर्ड बताता है कि साल 2007 से 2017 के बीच देश के भूजल-स्तर में 61 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई। इसमें कोई शक नहीं कि बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगीकरण और मानसून में देरी इस गिरावट की बड़ी वजह है।


जल-संरक्षण के मोर्चे पर इतनी गम्भीर चुनौतियों के बावजूद बीते सात दशक में देश में पानी के दोबारा इस्तेमाल को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बन सकी। तभी भारत वॉटर रिसाइकल के मामले में बेहद पिछड़ा है। आज भी देश के घरों में इस्तेमाल होने वाला 80 फीसदी पानी बर्बाद होता है, जबकि इजराइल में इस्तेमाल में लाए गए पानी का 100 फीसदी फिर से इस्तेमाल किया जाता है। देश के सर्वोच्च थिंक टैंक नीति आयोग के मुताबिक जल संकट की वजह से भारत की जीडीपी में साल 2050 तक 6 फीसदी की कमी हो सकती है। इतना ही नहीं अगले 11 सालों में यानी साल 2030 तक देश में पानी की आपूर्ति के मुकाबले माँग दोगुनी हो जाएगी। तब देश की करीब 40 फीसदी आबादी ऐसी होगी, जिनके पास पीने का पानी नहीं होगा। अगले एक साल में यानी साल 2020 तक देश के 21 बड़े शहरों से भूजल ही खत्म हो सकता है। इनमें देश की राजधानी दिल्ली के साथ-साथ हैदराबाद, चेन्नई और बेगलुरु जैसे शहर शामिल हैं।


हालांकि इस बीच दुनिया के कई देशों में पानी को बचाने की बेहतरीन पहल भी की गई है। दरअसल साल 2009 में संयुक्त राष्ट्र ने अपने यूनाइटेड नेशंस एनवॉयरमेंट प्रोग्राम में वर्षाजल संचयन को ज्यादा-से-ज्यादा प्रचारित करने पर जोर दिया था। उसके बाद से कई देश इस दिशा में आगे आए। इनमें ब्राजील, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, चीन, जर्मनी और इजराइल का नाम सबसे पहले आता है, जो जल संकट से निपटने के लिए बेहतरीन तकनीक का सहारा ले रहे हैं। हालांकि भारत में अब तक बारिश का केवल 8 फीसदी पानी ही संरक्षित हो पाता है।  भारत में अभी तक पानी को भी बड़े मुद्दे के तौर पर नहीं देखा गया। यहाँ तक कि हमारे संविधान तक में नदियों के संरक्षण के लिए कोई प्रावधान नहीं है। संविधान में नदियों की रक्षा करना नागरिकों का कर्तव्य भर है यानी कोई जवाबदेही नहीं। न ही कोई ठोस नीति, न ही पानी की बर्बादी रोकने के खिलाफ कोई कड़ा कानून। तभी तो अकेले मुम्बई में रोज वाहन धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है। दिल्ली, मुम्बई और चेन्नई में पाइप लाइनों की खराबी के चलते हर रोज 40 फीसदी तक पानी बेकार बह जाता है। पानी की ऐसी बर्बादी के चलते ही बीते 70 साल में 30 लाख में से 20 लाख तालाब, कुएँ, पोखर, झील पूरी तरह खत्म हो चुके हैं। हाल-फिलहाल में भारत सरकार ने जल संकट से निपटने के लिए अलग-अलग मोर्चे पर कई कदम उठाए हैं। सरकार के एजेंडे में जल-संरक्षण प्राथमिकता पर है। इसी के मद्देनजर सरकार ने 'जलशक्ति अभियान' की शुरुआत की है और इस महत्त्वपूर्ण अभियान की जिम्मेदारी जलशक्ति मंत्रालय पर है। मकसद है पानी को लेकर जानकारी फैलाना ताकि जल-संरक्षण को बढ़ावा मिल सके। 


अब स्थितियाँ बदलती दिख रही हैं। घर-घर पीने का साफ पानी, जल-संरक्षण और जल⪅न सरकार की प्राथमिकता में साफ नजर आ रहा है। आंकड़े भी बता रहे हैं कि बीते कुछ सालों में घर-घर पीने के साफ पानी की उपलब्धता में इजाफा हुआ है। प्रधानमंत्री भी जल-संरक्षण को सामाजिक जिम्मेदारी मानते हुए इस मोर्चे पर सहभागिता की अपील कर चुके हैं। बीते दिनों ग्रामीण इलाकों में पानी के संकट को देखते हुए उन्होंने देश के दो लाख से ज्यादा सरपंचों और गाँव प्रधानों को निजी तौर पर पत्र लिखा, जिसमें बारिश के पानी का संरक्षण करने की अपील की गई। जाहिर है सरकार कई मोर्चों पर एक साथ काम कर रही है। साल 2024 तक बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में 100 लाख करोड़ का निवेश करना भी उसी दिशा में एक बड़ी पहल है। जाहिर तौर पर चुनौती काफी बड़ी है। ऐसे में पानी के संकट को दूर करने का सबसे सस्ता और अच्छा उपाय है। पानी की बचत और पानी का कम-से-कम इस्तेमाल करना और इस दिशा में क्रान्तिकारी सुधार लाने के लिए जलशक्ति मंत्रालय तेजी से कार्य कर रहा है।


मनरेगा के तहत जल संरक्षण


पिछले पाँच वर्षों के दौरान मनरेगा एक ऐसी प्रमुख ताकत बनकर उभरा है, जो समस्त ग्रामीण भारत में जल संरक्षण के प्रयासों को आगे बढ़ा रहा है। इस योजना के जरिए पहले मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में गहरा संकट कम करने पर ध्यान दिया जाता रहा है, लेकिन अब यह राष्ट्रीय संसाधन प्रबंधन (एनआरएम) से जुड़े कार्यों के जरिए ग्रामीण आमदनी बढ़ाने के एक केन्द्रित अभियान में तब्दील हो गई है। वर्ष 2014 में मनरेगा अनुसूची-1 में संशोधन किया गया, जिसके तहत यह अनिवार्य किया गया है कि कम-से-कम 60 प्रतिशत व्यय कृषि एवं उससे जुड़ी गतिविधियों पर करना होगा। परिणामस्वरूप अधिनियम के तहत स्वीकृति योग्य कार्यों की एक सूची तैयार की गई है, जिसमें ऐसी लगभग 75 प्रतिशत गतिविधियों या कार्यकलापों का उल्लेख किया गया है जो जल सुरक्षा एवं जल संरक्षण के प्रयासों को सीधे तौर पर बेहतर बनाते हैं। पिछले पाँच वर्षों के दौरान एनआरएम से जुड़े कार्यों पर किए गए खर्चों में निरन्तर बढोत्तरी दर्ज की गई है।


संसाधनों का लगभग 60 प्रतिशत राष्ट्रीय संसाधन प्रबन्धन (एनआरएम) पर खर्च किया जाता है। एनआरएम से जुड़े कार्यों के तहत फसलों के बुवाई क्षेत्र (रकबा) और पैदावार दोनों में ही बेहतरी सुनिश्चित कर किसानों की आमदनी बढ़ाने पर फोकस किया जाता है। भूमि की उत्पादकता के साथ-साथ जल उपलब्धता भी बढ़ाकर यह सम्भव किया जाता है। एनआरएम के तहत किए गए प्रमुख कार्यों में चैकडैम, तालाब, पारम्परिक जल क्षेत्रों का नवीनीकरण, भूमि विकास, तटबंध, फील्ड चैनल, वृक्षारोपण, इत्यादि शामिल है। पिछले पाँच वर्षों के दौरान 143 लाख हेक्टेयर भूमि इन कार्यों से लाभान्वित हुई है।


जहाँ तक तकनीकी पक्ष का सवाल है, समुचित धनराशि जल-संरक्षण कार्यों पर खर्च की जा रही थी, कर्मचारियों का तकनीकी प्रशिक्षण अपर्याप्त था और अक्सर ऐसी संरचनाएँ तैयार की जाती थीं, जो अपेक्षित नतीजे नहीं देती थीं। इसे ही ध्यान में रखते हुए जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय और भूमि संसाधन विभाग के साथ साझेदारी में मिशन जल-संरक्षण दिशा-निर्देश तैयार किए गए थे, ताकि ऐसे डार्क एवं ग्रे-ब्लॉक पर ध्यान केन्द्रित किया जा सके, जहाँ भूजल का स्तर तेजी से गिर रहा था। इस साझेदारी से एक सुदृढ़ तकनीकी मैनुअल बनाने के साथ-साथ अग्रिम पंक्ति वाले श्रमिकों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड के इंजीनियरों एवं वैज्ञानिकों के तकनीकी ज्ञान का लाभ उठाने में मद्द मिली।


मनरेगा के तहत सम्बन्धित क्षेत्र के लिए विशेष रूप से बनाई गई योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए विभिन्न राज्यों के साथ सामंजस्य स्थापित कर काम किया जाता रहा है। एनआरएम कार्यों में जल संरक्षण की समस्या से निपटने के लिए पूर्ण टूलकिट शामिल है। इसके तहत विभिन्न कार्यकलापों की सूची कुछ इस तरह से तैयार की जाती है, जिससे कि यह राज्यों की विभिन्न जरूरतों की पूर्ति उनकी भौगोलिक स्थिति के अनुसार कर सके। परिणामस्वरूप कई राज्य बड़े उत्साह के साथ जल-संरक्षण कार्यों को शुरू करने के लिए अपने संसाधनों को मनरेगा से जुड़ी धनराशि के साथ जोड़ने में समर्थ हो पाए हैं। इसके तहत नियोजन एवं कार्यान्वयन प्रयासों से समुदायों को भी जोड़ा जाता रहा है। हालांकि व्यक्तिगत लाभार्थियों की भी सेवाएँ ली गई हैं, ताकि उनकी जरूरतें पूरी हो सकें। समुदाय ही कार्यों के चयन, लाभार्थियों के चयन और परिसम्पत्तियों के रखरखाव के लिए जवाबदेह हैं। मनरेगा कोष को राज्यों की धनराशि के साथ जोड़ने से निम्नलिखित राज्य-स्तरीय योजनाओं को अत्यन्त सफल बनाना सम्भव हो पाया है।


इन योजनाओं को समस्त राज्यों के लगभग 50,000 गाँवों में सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया गया है। महाराष्ट्र में जलयुक्त शिवहर अभियान से 22,590 गाँवों में सकारात्मक असर पड़ा है, जबकि मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना राजस्थान के समस्त 12,056 गाँवों में अत्यन्त सफल रही है। राजस्थान और महाराष्ट्र में किए गए स्वतंत्र आकलन से भूजल के स्तर में 1.5 मीटर से 2 मीटर की वृद्धि, जल भंडारण क्षमता में बढ़ोत्तरी, फसल तीव्रता में 1.25 से 1.5 गुना की वृद्धि, पानी के टैकरों पर व्यय में उल्लेखनीय कमी और बेकार पड़े हैंडपम्पों, नलकूपों एवं खुले कुओं का कायाकल्प होने के बारे में जानकारी मिली है। एनआईआरडी की टीम इन गाँवों का दौरा करेगी, ताकि जल-संरक्षण कार्यों की गुणवत्ता का आकलन किया जा सके। मंत्रालय व्यापक दस्तावेजों एवं आलेखों के साथ इस तरह के गाँवों की पूरी सूची वेबसाइट पर डाल रहा है और इसके साथ ही नागरिकों से अनुरोध कर रहा है कि वे इन गाँवों का दौरा करें और जमीनी हकीकत से वाकिफ हों।


दिल्ली स्थित आर्थिक विकास संस्थान (आईईजी) ने जनवरी, 2018 में मनरेगा के तहत एनआरएम कार्यों के साथ-साथ टिकाऊ आजीविकाओं पर इसके असर का राष्ट्रीय आकलन किया था। अध्ययन के दौरान राष्ट्रीय आकलन करते वक्त उत्पादकता, आमदनी, पशु चारे की उपलब्धता के साथ-साथ एनआरएम कार्यों की बदौलत यहाँ तक कि जलस्तर में भी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। विभिन्न अन्य अध्ययनों से पता चला है कि मनरेगा कार्यों से इसके जल सम्बन्धी कार्यकलापों के जरिए ग्रामीण समुदायों को सुदृढ़ बनाने में मदद मिली है। मनरेगा के तहत हर वर्ष किए जाने वाले सार्वजनिक खर्च के नियोजन, कार्यान्वयन, निगरानी और रिपोर्टिंग को बेहतर करने के लिए नवीनतम उपलब्ध प्रौद्योगिकी को अपनाने में निरन्तर काफी मुस्तैदी दिखाई जाती रही है और इस प्रक्रिया में भारत को जल की दृष्टि से सुरक्षित बनाने की दिशा में सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों में आवश्यक सहयोग दिया जाता रहा है। 


जल शक्ति अभियान


जल शक्ति अभियान जल सुरक्षा को बढ़ाने की एक राष्ट्रव्यापी कोशिश है। एक जुलाई, 2019 से शुरू हुए जल शक्ति अभियान के तहत 256 जिलों में 5 लाख से अधिक जल संरक्षण इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए जा चुके हैं। एक अनुमान के अनुसार जल शक्ति अभियान से 3.7 करोड़ लोग जुड़ चुके हैं और इसके तहत लगभग 12.3 करोड़ पौधे भी लगाए गए हैं। हाल ही में हुई एक समीक्षा बैठक में ये जानकारी दी गई