मप्र श्रम आयुक्त का आदेश - कर्मचारी काम पर ना आए तो काटे तनख्वाह


     मप्र के श्रमायुक्त आशुतोष अवस्थी द्वारा यह आदेश जारी किया गया है कि अनुमति प्राप्त उद्योगों और कारखानों के मालिकों  के बुलाने के बावजूद कोई कर्मचारी प्रारंभ हुए कारखाने में नहीं आता है तो उसका वेतन काटा जा सकता है। गौरतलब है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने 29 मार्च 2020 को जारी आदेश में लॉकडाउन के दौरान किसी भी कर्मचारी व श्रमिकों के वेतन में कोई भी कटौती नहीं किए जाने के आदेश दिए थे।


कोरोना वायरस के चलते जारी लंबे लॉकडाउन ने आम आदमी की आर्थिक स्थिति पहले ही खराब कर दी है और अब मप्र श्रम विभाग के एक आदेश से श्रमिकों और कर्मचारियों की परेशानी और अधिक बढ़ने वाली है।


इंदौर स्थित मप्र श्रमायुक्त कार्यालय द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए मप्र के सभी जिलों में लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। मप्र श्रमायुक्त कार्यालय द्वारा 23 मार्च 2020 को जारी परिपत्र में यह निर्देशित किया गया था कि लॉकडाउन के दौरान बंद रहने वाले कारखानों, दुकानों एवं वाणिज्यिक संस्थानों के कर्मकारों, कर्मचारियों के वेतन और अन्य वैधानिक आय में किसी तरह की कटौती नहीं की जाए। इसके बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने भी 29 मार्च 2020 को आदेश जारी कर लॉकडाउन के दौरान किसी भी कर्मचारी व श्रमिकों के वेतन में कोई भी कटौती नहीं किए जाने के आदेश दिए थे।


श्रमायुक्त द्वारा जारी ताजे आदेश में कहा गया है कि वर्तमान में कई कारखानों, दुकानों और वाणिज्यिक संस्थानों को सुरक्षा उपायों के साथ चालू किया गया है। कई औद्योगित एवं व्यापारिक संगठनों द्वारा श्रमायुक्त को शिकायत की गई है कि शासन के निर्देश से प्रारंभ किए गए कारखानों एवं अन्य संस्थाओं में कार्य करने वाले कर्मचारी प्रबंधन के बुलाने के बावजूद काम पर नहीं आ रहे है। आदेश में श्रमायुक्त द्वारा श्रम संगठनों एवं श्रमिकों को सलाह दी गई है कि वे अपने कार्य पर लौटे अन्यथा प्रबंधन उनके वेतन में कटौती करने के लिए स्वतंत्र रहेगा।


श्रमिक एवं  संघठनों ने किया विरोध


  मध्यप्रदेश श्रम आयुक्त के आदेश का श्रमिकों ने विरोध किया है उनका कहना है कि  प्रारंभ हुए कई कारखानों के पास श्रमिकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। ऐसे में श्रमिक अपनी जान जोखिम में डालकर काम पर कैसे जा सकता है। श्रम संगठनों ने श्रमायुक्त के इस आदेश का विरोध कर आदेश वापस लेने की मांग की है।