संतुलन और समावेशी सरोकार के प्रणेता: अटल जी
(प्रो. रामदेव भारद्वाज, कुलपति)
आज के सामाजिक एवं राजनीतिक पर्यावरण में भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के व्यक्तित्व में समाहित समग्रता के भाव, विचारों का अनुकरण करना आज के समय की नितांत आवश्यकता है। अटल जी का व्यक्तित्व समावेशी था, वे सरोकार सम्पन्न, समन्वयवादी और संवेदनशील थे, अति संवेदनशील और भावुक व्यक्तित्व के धनी थे।
उनके द्वारा समय-समय पर व्यक्त किए गए विचारों, उनके भाषणों, उनकी कविताओं, उनके संपादकीय और संसद एवं जन सभाओं में अभिव्यक्त विषयों का विशेषण और गहन अध्ययन करें तो हमें उनके चिंतन में अनेक सामाजिक, दार्शनिक और राजनीतिज्ञों के विचारों से साम्य नजर आता है।
अटल जी महर्षि अरविंद के अतिमानव के गुणों से परिपूर्ण और समग्र जीवन दृष्टि (integral view of life), की अनुकृति नजर आते हैं। जैसा महर्षि ने कहा था कि अब मनुष्य का बायोलॉजिकल डेवलपमेंट नहीं होगा, अपितु मनुष्य के मस्तिष्क का विकास होगा और मनुष्य मानव से अति मानव की यात्रा करेगा। अटल जी में व्याप्त बौद्धिक तीक्षणता (spontaneous reactive appititute) शीघ्र ही logical culmination पर पहुँचने की क्षमता यह प्रमाणित करती है। अटल जी महर्षि के दर्शन में अभिव्यक्त आत्मज्ञान, सर्जनात्मकता तथा बुद्धिमत्ता (spirituality, creativity & intellectuality) का सम्मलित अभिव्यक्त स्वरूप थे। अटल जी की लोकतंत्र में प्रगाढ़ आस्था थी और वह आस्था सैद्धान्तिक ही नहीं थी, अपितु उनके प्रत्येक कृत्य में परिलक्षित होती थी। इस दृष्टि से अटल जी विचारक मानवेंद्र राय के नव-मानववाद के निकट नजर आते हैं। विचारक मानवेंद्र की तरह ही उदारवादी लोकतंत्र में अटल जी की प्रगाढ़ आस्था थी। अटल जी एक ऐसा नव-मानववादी उदारवादी लोकतंत्र के पक्षधर थे, जिसमें धार्मिक कट्टरता और रूढ़िवादिता को कोई स्थान न हो। अटल जी ने समय-समय पर धार्मिक कट्टरता और रूढ़िवादी मान्यताओं का घोर विरोध किया। जयप्रकाश नारायण की सप्त क्रांति के विचारों ने भी अटल जी के सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों को प्रभावित किया लगता है।
अटल जी संपूर्ण क्रांति के पक्षधर थे। उनकी धारणा थी कि सिर्फ आर्थिक अथवा राजनीतिक विकास से व्यक्ति और समाज के जीवन में सुधार नहीं आ जाएगा। अपितु जब तक बौद्धिक, शैक्षणिक, आध्यत्मिक उन्नयन नहीं होगा, तब तक समाज और राष्ट्र उन्नत नहीं हो सकता। अतः उन्होंने समाज के प्रत्येक घटक में तृणमूल के परिवर्तन की दृष्टि से सभी को अपनी योजनाओं के माध्यम से अवगत कराया और संपूर्ण क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया। अटल जी का व्यक्तित्व दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद की प्रतिमूर्ति प्रमाणित होते हैं। उपाध्याय जी की भाँति ही अटल जी भारत निर्माण के लिए विशुद्ध भारतीय तत्ववादी दृष्टि को विकसित करने की महती आवश्यकता पर जोर देते थे। अटल जी का चिंतन एकाकी चिंतन नहीं था। इनकी दृष्टि समग्र थी और वे सभी में समग्रता का बोधभाव विकसित करने पर बल देते थे। उन्होंने समाज जीवन के विविध घटकों यथा-कला, कौशल, साहित्य, दर्शन, संस्कृति, मन, बुद्धि, अभिरुचि, सभ्यता, अचार-विचार पर आधारित समत्व बहाव से प्रेरित सभी से समन्वय और सरोकार पर आधरित जीवन दृष्टि प्रतिपादित की है। अटल बिहारी वाजपेयी पर श्यामाप्रसाद मुखर्जी के विचारों का प्रभाव नजर आता है। मुखर्जी की मानवता की उपासना की दृष्टि और सिद्धान्त वादिता ने वाजपेयी जी को प्रभावित किया। मुखर्जी की भांति ही अटल जी की दृष्टि भी संस्कृति थी। वे एक रक्त, एक भाषा, एक ही संस्कृति और एक विरासत में विश्वास रखते थे और प्रेरित भी करते थे। अटल जी के व्यक्तिव की विलक्षणता इस बात में थी कि वे चुनौतियों को स्वीकार करते थे और उनको संकल्प निरूपित करते हुए उन चुनौतियों एवं संकल्पों को पूरा करने में एकग्र रहते थे, उन्हें पूरा करने के लिए प्रेरित भी करते थे।
अटल जी का संपूर्ण जीवन चुनौतियों को संकल्प रूप देने, संकल्पों को प्राप्त करने और नई दिशा व नई जीवन दृष्टि विकसित करने में व्यतीत हुआ। अटल जी, महात्मा गांधी के राष्ट्र भाषा के प्रेम के विचारों से प्रभावित थे। देवनागरी लिपि और राष्ट्रभाषा का सम्मान अटल जी के जीवन का आदर्श था। गांधी की तरह अटल जी यह मानकर चलते थे कि भाषा के बिना राष्ट्र अधूरा है। उनका हिंदी भाषा के प्रति प्रेम, हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में व्यक्त होता है। जब अटल जी ने पहली बार हिंदी भाषा में संयुक्त राष्ट्र में अपना भाषण हिंदी भाषा में दिया। जब उन्होंने लिखा "गूंजी हिंदी विश्व में,स्वप्न हुआ साकार! राष्ट्र संघ के मंच से हिंदी का जयकार, हिंदी का जयकार। अटल जी का जीवन सरदार पटेल के जीवन के निकट नजर आता है। सरदार पटेल की तरह ही अटल जी का जीवन भी अहंकार रहित था। पटेल की भांति ही अटल जी में जटिल समस्याओं को अर्थात् समस्याओं की जटिलता को सरलता में बदलने की कला में अटल जी निपुण थे। पटेल जी की तरह ही अटल जी ने राष्ट्र जीवन की विघटनकारी तत्वों को दृढ़ता से धराशाही किया। जिस प्रकार पटेल जी ने देशी रियासतों की ब्रिटिश राज भक्ति को राष्ट्र भक्ति में परिवर्तित किया, राजाओं के ब्रिटिश के प्रति समर्पण को देश भक्ति में रूपांतरित किया, इसी प्रकार का कार्य अटल जी ने किया। उन्होंने राष्ट्र, राष्ट्र तत्व और राष्ट्रीयता के भावों को अपनी लेखिनी के माध्यम से, अभिभाषणों के माध्यम से तथा अपनी कार्ययोजनाओं के माध्यम से निरंतर रखा। धार्मिक दृष्टि से अटल जी धर्मों में सबसे बड़ा धर्म राष्ट्र धर्म को मानते थे।
अटल जी होने का अर्थ--
अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व पारदर्शिता का पर्याय था। उनके जीवन में एक विलक्षण संतुलन तो देखने को मिलता ही है साथ ही उनकी प्रवृत्ति मूलतः इंक्लूसिव थी। उनका व्यक्तित्व अनुकरणीय तो है ही, परन्तु अनुकरणीय करना और अटल जैसा अटल बनना इतना सरल और सहज नहीं है। उन्होंने अपने जीवन को जिस तरह ढाला और जो जीवन मूल्य एवं मानक स्थापित किए वे अटल, अटल बिहारी और अटल बिहारी वाजपेयी होने का अर्थ स्पष्टु करते हैं। उनके जीवन के कुछ पहलुओं की चर्चा होती रहनी चाहिए और अनुकरण भी करते रहना चाहिए।
अटल बिहारी वाजपयी होने का अर्थ भारतीय राजनीति में सिद्धांतवादी होना है। जब राजनीति में सिद्धान्तों का तिरोहण हो रहा था और राजनीति में असहिष्णुता, अहंकार और असामाजिक तत्वों का बोलबाला हो रहा था और भारतीय राजनीति का आधार साम, दाम, दंड, भेद, उपेक्षा, उपहास, निंदा, तिरस्कार, घृणा पर आधारित हो रही थी और इन्हीं अनैतिक मूल्यों पर आधारित सामाजिक संगठन तथा राजनीतिक दलों का प्रादुर्भाव हो रहा था तब वाजपेयी जी ने प्रतिपक्ष की राजनीति करते हुए राजनीति के प्रेरणादायी पुरोधा और सिद्धांतवादी राजनीतिज्ञ के रूप में उभरकर सामने आए। वाजपेयी जी ने प्रतिपक्ष की राजनीत करते हुए सत्ताधारी राजनीतिक दल के प्रशंसनीय कार्यों की तारीफ करने की नई राजनीतिक संस्कृति का सूत्रपात किया। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, श्रीमती इंदिरा गांधी के कई कार्यों की सराहना की, विशेषत: बांग्लादेश के निर्माण में भारत की भूमिका। उन्होंने यह स्थापित किया कि प्रतिपक्ष दल और उसके नेता की कौन कौन-सी भूमिकाएं होनी चाहिए। विरोध के लिए ही विरोध नहीं, अपितु राष्ट्र हित और राष्ट्र के स्वाभिमान को लक्ष्य मानते हुए समर्थन अथवा विरोध करना चाहिए। सरकार के कार्यों की समीक्षा हो, सरकार को लज्जित और अपमानित करने के लिए नहीं, अपितु राष्ट्र हित को समर्पित कार्यों को देखते हुए।
अटल जी जितने शांत, सहज, मृदु और सौम्यता के धनी थे, उतने ही वे आक्रामक, कठोर और अपने संकल्पों को दृढ़ता के साथ पाने लिए आक्रामक भी थे। उनकी यह आक्रामक मुद्रा आपातकाल के दौरान देखने को मिलती है। जेल में रहते हुए भी राष्ट्र चिंतन, लोकतंत्र की आराधना एवं तात्कालिक राजनीतिक परिवेश को परिवर्तित करने की उत्कृष्ट, उत्कंठा और योजनाबद्ध कार्यनीति का सृजन उनके आक्रामक मन और मस्तिष्क का चित्रण करता है। इतना होने पर भी अटल जी ने सत्तापक्ष के लिए कोई दुर्भावना पूर्ण शब्दों का प्रयोग नहीं किया, परंतु आपात काल को लोकतंत्र के लिए "दुर्भाग्य काल" कहा। जेल में मौन रहकर चिंतन करते हुए जनता पार्टी की योजना रची।
अटल जी भारतीय राजनीति के एकमात्र ऐसे राजनेता रहे, जिन्होंने सत्ता पक्ष के शीर्ष नेता के रूप में भी मानक स्थापित किए। वे समन्वयवादी जरूर थे, परंतु समर्पण वादी नहीं, यद्दपि वे सब को साथ लेकर चलने वाले राजनेता थे, परन्तु समझौता वादी नहीं, सिद्धांतों के साथ उन्होंने कभी किसी के साथ समझौता नहीं किया। जनता पार्टी शासनकाल में विदेशमंत्री रहते हुए दोहरी सदस्यता के प्रश्न पर अटल जी ने त्याग पत्र दिया, फलतः जनता सरकार गिर गई। अटल जी ने दृढ़ता पूर्वक कहा कि वे स्वयंसेवक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें संस्कार दिए, उनको एक व्यक्ति से अटल व्यक्तित्व के रूप में निखार है। संघ उनकी कर्मभूमि है, वे संघ की कीमत पर कोई समझौता नहीं करेंगे। भारतीय राजनीति में यह एकमेव उदाहरण है। इस मानक को अभी तक कोई स्पर्श भी नहीं कर पाया है और इस परिवर्तित राजनीतिक पर्यावरण में बहुत कठिन लगता है। अटल जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी का गठन, उसके लक्ष्यों के निर्धारण और लक्ष्यों को मूर्तरूप देने में अटल जी जैसा नेतृत्व कर्ता, संघटक, किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानने वाला, जुझारू कर्मठ नेतृत्व से सम्पन्न व्यक्तित्व दूसरा नहीं है और ना ही हो सकता। यह अटल जी की ही राजनीतिक सूझबूझ, रणनीति, समय की नब्ज को, स्पंदन को समझने की कला का परिणाम था कि भारतीय लोकसभा संसद में दो सांसदों का प्रतिनिधित्व करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने अटल जी के नेतृत्व में तेरह दिन, तेरह महीने और पाँच वर्षों के कार्यकाल की सरकार का नेतृत्व किया।
प्रलोभनों को तिलांजलि -
वाजपेयी जी ने ऐसे विषयों के साथ जो नीतिगत एवं सैद्धांतिक नहीं है, कभी भी पेेरवी नहीं की। वे इस दृष्टि से बहुत ही मुखर एवं स्पष्ट बोलते थे। चाहे उनके स्वयं के दल के ही विषय क्यों न हो। इस कसौटी पर अटल जी को देखा जाए तो गुजरात दंगों पर उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जी को सार्वजनिक रूप से 'राजधर्म' के पालन करने की शिक्षा दी थी। अयोध्या प्रकरण पर भी उन्होंने अपने प्रिय साथियों को जिनमें विशेषतः लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को भी राम मंदिर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर संयत रहने तथा धैर्य के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त करने की सलाह दी थी और भड़काऊ और उत्तेजना पैदा करने वाले वक्तव्यों से पृथक रहने को कहा था। वाजपेयी जी सदैव संयत भाषा का प्रयोग करते थे। इस दृष्टि से वे निःस्पृह, त्यागी और फक्कड़ प्रवृत्ति के थे। वाजपेयी जी ने सार्वजनिक जीवन, राजनीतिक जीवन और व्यक्तिगत जीवन में जीवनपर्यंत सहष्णुता, सहनशीलता, विनम्रता और धैर्य जैसे मानवीय मूल्यों को अपनाया, अन्य पक्षीय एवं विपक्षियों को कड़वाहट का त्याग करने तथा असहमति होते हुए भी परस्पर सौहार्दपूर्ण रहने की सलाह देते थे। विरोधियों के साथ नोक-झोंक से परे वाजपेयी जी असहमतियों को कड़वाहट में नहीं बदलने देते थे। साथ ही अपनी वाक्पटुता से कड़वी से कड़वी बात को दूसरे पक्ष तक पहुंचा ही देते थे कि उनका मंतव्य क्या है। इतना ही नहीं वाजपेयी जी की कही बात को कोई बुरा भी नहीं मानता था।
भारतीय संविधान के प्रति उनकी वचनबद्धता अनुकरणीय है। धर्मनिरपेक्षता के प्रति उनके मन में सर्वोच्चता का भाव था। वे धार्मिक थे परन्तु अन्य धर्मों के प्रति भी उनके मन में उतना ही सम्मान और प्रेम था। उन्होंने स्वधर्म और राजधर्म का संपूर्ण निष्ठा के साथ निर्वहन किया। सभी धर्मों और वर्गों के अनुयायियों में वाजपेयी जी की स्वीकार्यता थी। वे सभी भारतीयों के चहेते, लाड़ले, प्यारे और दुलारे थे। अटल जी के प्रति किसी भी राजनीतिक दल अथवा वर्ग में कड़वाहट और वैमनस्य नहीं है। सभी भारतवासी अटल जी के गुणों का गुणगान करते हैं, उनका सम्मान करते हैं, उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रेरणा लेते हैं। निःसंदेह अटल जी मूल्यपरक सविंधान की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने जन मानस से प्यार लिया, जन मानस को प्यार दिया और प्यार पर आधारित राजनीति की स्थापना की। वे संस्कृति के प्रहरी अजात शत्रु थे।
राष्ट्र को समर्पित जीवन-
अटल जी ने अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। इन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मूल्यों की स्थापना में, सिद्धांतों के सृजन और त्याग पर आधारित राजनयिक संस्कृति की स्थापना के लिए अपना सबकुछ अर्थात् तन, मन और जीवन राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर दिया। वे अविवाहित रहे, परिवार को राजनीत से दूर रखा और ऐसा कुछ नहीं किया जो उनके व्यक्तित्व अथवा राजनय पर कलंक लगे। अटल जी के रोम-रोम में राष्ट्र व्याप्त था, वे यूं ही राष्ट्र पुरुष नहीं बने। वे पुरुषार्थी थे और संघर्ष उनके जीवन की शक्ति। वे भावुक तो थे ही साथ ही साथ कवि हृदय भी थे। भावनाओं और यथार्थ का समन्वय उनके जीवन में देखने को मिलता है। भावनाओं को शब्दों के माध्यम से जो चित्र वो उकेरते थे, अभिव्यक्त करते थे वह लोगों को अभिप्रेरित तो करता ही था, परन्तु साथ ही साथ उसके अनुरूप कृत्य करने की भी शक्ति प्रदान करता था। जब अटल जी जनसंघ के अध्यक्ष थे तब उन्होंने राष्ट्र, राष्ट्रबोध, राष्ट्रियता, राष्ट्रवाद की जो व्याख्या की है वह हमें अभिप्रेरित करता है। वे राष्ट्र को सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा अथवा भूखंड नहीं मानते थे। अटल जी ने राष्ट्र को व्यक्त करते हुए कहा कि "राष्ट्र कोई जमीन का टुकड़ा नहीं, यह एक जीता जागता राष्ट्र पुरुष है। हिमालय पर्वत राष्ट्र का मस्तष्क है, गौरी शंकर इसकी शिखाएँ है। पावस के काले-काले मेघ इसकी केश राशि हैं, दिल्ली दिल है, विंध्याचल कटि और नर्मदा करधनी है। पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट इसकी दो विशाल जंघाएं है। कन्याकुमारी इसके पंजे है। समुद्र ऐसे राष्ट्र पुरुष के चरण पखारता है, सूरज और चंद्रमा इसकी आरती उतारते हैं। ये भारत भूमि वीरों की भूमि है, ये अर्पण की भूमि है, तर्पण की भूमि है। इसका कंकर-कंकर हमारे लिए शंकर है, इसका बिंदु- बिंदु हमारे लिए गंगाजल है। हम जिएंगे तो इस राष्ट्र के लिए और मरेंगे तो इसके लिये और मरने के बाद भी हमारी अस्थियां जब समुद्र में विसर्जित की जएगी तो एक ही आवाज आएगी भारत माता की जय, भारत माता की जय।" अटल जी राजनीतिज्ञ तो थे ही, साथ ही साथ कवि ह्रदय भी थे।
अटल जी की कविताओं में राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव मिलता है। उनकी रचनाशीलता, साहित्यिक और काव्यमय शैली राष्ट्रभक्ति से रोमांचित कर देती है। अटल जी की एक अद्भुत कविता उनके राष्ट्र प्रेम और देश भक्ति की उल्लेखनीय मिशाल प्रस्तुत करती है। उनकी कविता- ''हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय", राष्ट्र हित के प्रति उनके रुझान को प्रदर्शित करती है। उनकी रचनाओं में राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता आद्योपान्त प्रकट होती ही रही है। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आंदोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पायी। वाजपेयी जी की यह राष्ट्रीय भावना और राष्ट्र के लिए सर्वस्व त्याग ने, समर्पित रहने के विचार ने, अनेकों युवाओं, समाजसेवियों और राजनीतिज्ञयों की जीवन धारा को परिवर्तित करने का माध्यम बना। अटल जी सबको साथ लेकर चलने में माहिर थे। उन्होंने कभी किसी की व्यक्तिगत स्तर पर आलोचना नहीं की। किसी का विरोध भी किया तो नीतिगत और सैद्धांतिक। वे शांति के पुजारी थे, अहिंसा के उपासक थे, परन्तु क्रांति के भी अग्रदूत थे। पड़ोसी राष्ट्रों विशेषतः चीन और पाकिस्तान के प्रति सदैव सहयोग और समन्वय की पृष्ठभूमि एवं संभावनाओं को खोजते रहते थे, परन्तु राष्ट्र हितों और राष्ट्रीय स्वाभिमान के साथ कोई समझौता नहीं चाहते थे। तभी तो विदेश मंत्री कार्यकाल में चीन की अधूरी राजकीय यात्रा छोड़कर वापस आ गए और पाकिस्तान के साथ विशेषतः कारगिल युद्ध के दौरान एक उग्र और क्रांतिकारी के रूप में नजर आए। वे अपनी ओर से पहल कर किसी देश को परेशान और भयभीत नहीं करने की नीति का पालन करते थे, परंतु देश की स्वाधीनता और सम्मान की रक्षा के लिए हथियार उठाने और युद्ध करने में भी संकोच नहीं करते थे।
अटल जी किसी को स्थाई शत्रु भी नहीं मानते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि आप सबकुछ बदल सकते हो, परंतु पड़ोसी नहीं बदल सकते। अतः सदैव द्वेष, ईर्ष्या, प्रीतिशोध, प्रति हिंसा, भय, तनाव, हिंसा और युद्ध के वातावरण को निर्मित कर शांति से नहीं बैठ सकते। परंतु इसका आशय यह नहीं कि सदस्यकता और सज्जनता, शांति और सदभाव में राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ कोई नम्रता रखी जाए। वे हतधर्मिता, पूर्वाग्रह और प्रतिशोधात्मक कार्यवाही के पक्षधर नहीं थे। परंतु वे देश के समग्र विकास, उसकी प्रतिष्ठा में अभिवर्धन और स्वाधीनता की रक्षा में कटिबद्ध थे। वे राष्ट्र के उत्थान और विकास के लिए बार-बार, सतत, निरंतर प्रयास करते रहने के समर्थक थे। चीन और पाकिस्तान जैसे राष्ट्र भी आज अटल जी की कूटनीतिक क्षमताओं और राजनीतिक रणनीतियों का लोहा मानते हैं और एक प्रखर अंतरराष्ट्रीय नेतृत्वकर्ता के रूप में स्मरण करते हैं। अटल जी सच्चे अर्थो में भारतीय संस्कृति, जीवन मूल्यों और परंपराओं के सेवक थे, पुजारी थे। अटल जी की यह कविता "हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ, गीत नया गाता हूँ "साहस, विश्वास और धैर्य के साथ निरंतर राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा देती है। एक सच्चे राष्ट्र भक्त, संवेदनशील मानवता के पुजारी बनने के लिए प्रेरित करती है। हम साथ-साथ रहे राष्ट्र के लिए काम करते रहे।
प्रो. रामदेव भारद्वाज
कुलपति,
अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल